भईगे महुं ल कुछु, बोले बर नई मिलिस त सोचेंव, चल बाहिर म हवा खा आवं, बिहनचे उठेंव, बिन दतुन मुखारी घसे, किंदरे कस निकल गयेंव। रददा म काय देखत हंव!!! द दा रे आनि-बानि के टुकुर टुकुर देखत मनखे असन फबित ओन्हा पहिरे, कुकुर…, कोउनो कबरा, त कोउनो बिलवा त कोउनो भुरवा…. मने मन म कहेव.. कस ग भगवान मोला तै ह काबर मनखे जनम देहे ग, महु ल दईसनेहे कुकुर नई बना देतेस!!!
आगू गें, त दू झिन संगी मन, कुकुर ल संकरी म बांधे गोठियावत रहें, त महुं उनकर तिर म कान ल देहे रहेंव, …एक झिन ह कहे… तुमहारा कुकुर कोउन नसल का हे? मेरा कुकुर बिदेस का हे, मेरा कुकुर सोफा म बईठता हे, डाग बिसकुट खाता हे, कार म बईठके संझा किंदरने जाता हे.. साहब का कुकुर हे… बने ठने ठाठ ल कुकुर के देख के लगत घलो रिहिस ..दूसर मनखे सुनके तिर ले खसकिच गे। काबर ओकर कुकुर थोरहे नीचे नसल के रिहिस।
मैं ह सुन के दूनो मनखे के गोठ ल, अचानचकरित हो गेंव, तईहा के सियान मन मिल भेंट होवें, त कहें.. कस गा फलाना तै ह कोउन कुल अउ गोत्र के हस, तहां ले सबो पुरखा ल गिन देवें. भ…ईईई गे ग आज के मनखे मन के चिन्हार कुकुर हो गे हे.. जतका बड़का नसल के कुकुर धरे घुमहि ओतका बड़का कहाहिं।
अईसन सोंचत सोंचत मै ह एक ठन होटल तिर पहुंच पारेंव ….द दा…… गउकी अइसन कभुच नई देखेव, मारे आनि- बानि के सजे धजे कुकुर ग… बोक ले तब होयें, जब कुकुर ल केक काटत देखें…
गउकी हांसी घलो लागे, फेर एक घरी म आंखी म आंसू घलो छलछलागे… धन रे मनखे.. आज के मनखे मन ल दाई ददा ले ओ पार कुकुर ह हो गे हे….. सोंचत सोंचत तरिया पार पहुंच गयेंव… उहां एक झन संगी मिल गे… बहुते मनउवल करिस त ओकर घर म गयेंव… घर म भितराचे साट, घर के माई लोगन के खिसयाये के सोर सुनाइ दिहिस.. कहत रहे… देखो तुम काम करने आती हो तो काम बस किया करो, लईका पेचका लेके झन आया करो.. देखो तुमहारा लईका गमला तोड़ दिया.. मैं तुमहारा तनखा से पईसा काटूंगी। एति लईका के गोड ह छिला गे रहे. ओकर कोति कोउनो के धियान नई गे.. भलुक अउ बिचारा दाई मेर चार चटकन खा गे… तभेच एक ठन अंचभा घटना हो गे… कूदत फांदत उनकर कुकुर मेर कांच के गिलास ढकलागे… कुकुर काई…. कांई करे लगिस… घर म अफरा तफरी मांचगे… अरे……रिकु के पापा देखो …पुच्चु को लग गया है. डा़ को जल्दी मोबाइल लगाओ. पुच्चु का कितना लहु बह गया…. राम राम…. कोउन कांच का गिलास को रस्ता मे रखा उसकी खैर नहीं… मै ह सोचेंव आज कमईलिन के उपर गाज गिरबेच करहि.. अउ होइस वईसनेच…
धन धन अईसनहा मनखे आगी लग जातिस …दाई ददा बिमार परे ले ..कोउनो जतने बर नई आए.. ईहां कुकुर मारे दूध, पनीर मलाई खाके, कंबल ओढे, सोफा म सुते, नाक ल बजावत सचते रहिथे…. धन धन कुकुर के भाग……
गीता शर्मा
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सही म दीदी अजीब जमाना आगे
बहुत बढ़िया रचना। बिल्कुल सहीं बात कहे हव। बधाई